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कहानियां, निबंध,आलोचना
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कविता संग्रह
शायरी, One-liners,
चमकती इमारतों और आलीशान बंगलो,चमचमाती सड़कों और सजे हुए गमलों,ऊंचे ऊंचे हाइवे और बड़े बड़े आडिटोरियम,दमकते शहर और पथरीली गालियां।विकास के कितने प्रतीक हैं,पूरे या आधे- अधूरे।या आधे से भी कम,या कुछ भी
गाँव और शहर की दूरी, महज एक नदी हैं, दोनों के बीच फलती-फूलती, एक सुन्दर कड़ी हैं| गाँव हरियाली और शांति का दूत, शहर आपाधापी और प्रगति का प्रतीक| दोनों का मेल नहीं, जरा भी एक-दूजे से, पर दोनों ही आश्रित
बस एक पल के लिएजब किसी परदिल ठहर जाएवो प्यार ही क्या।एक पल में फिर वोकिसी और के लिए मचल जाएवो प्यार ही क्या।जिस प्यार को पाने के लिएन कर सके थोड़ा इंतजारवो प्यार ही क्या।जिस प्यार कोजीने के
ऐ! दोस्त, तुम्हारी यादों की आगोश में, अब जिंदगी कटती है| तुम्हारी बातों के जोश में, अब जिंदगी कटती है| जब तक तुम थे साथ, न थी कोई रोने वाली बात| अब तो पता ही नहीं लगता, कि कब आसूं बह आएंगे| अब दिन अके
जिन्दगी से दूर,कुसूर,उसका या किसी और का,न मालूम है उसको,न ही किसी और को। &n
कभी किसी अजनबी का,करों इंतजार तुम,एक अजनबी की तरह,एक दिन, कई दिनों तक, करों ऐतबार तुम,उसके मिलने का,फिर भी वो न मिले,तब थोड़ा-थोड़ा,मायूस से होने लगते हैं हम,पर वो अचानक कभी, अनजाने, अनचाहे रा
उसकी आहट से,मैं चौकन्ना हो जाता हूं,ताकने लगता हूं इधर उधर,झांक कर खिड़कियों से देखता हूं,उठ कर दरवाजे को खोलता हूं।पर यहां तोकोई दिख ही नहीं रहा,आस पास नज़रें दौड़ता हूं,फिर भी कोई नहीं दिखा,कुछ भ्रम
अपना घर अपना होता हैं,बाकी सब सपना होता हैं,बस गुज़र बसर होती हैं, जिन्दगी भर,पर हम तन्हा ही रहते हैं, हर सफ़र।ढूंढते रहते हैं किसी अपने को,हर भीड़ में, हर राह पर,पर राहें चलती रहती हैं,किसी अनजाने ही
बारिश की बूंदे शोर नहीं करती तूफानों सी बारिश की बूंदे कहर नहीं ढाहती नदियों सी बारिश की बूंदे नष्ट नहीं करती बाढो सी बारिश की बूंदे सूखे वृक्षों पर सूखे घासों पर रह गए प्यासों पर ढल कर उन्हें जीवन द
तेज बारिशों के बौछारों से मिट्टी की दीवारें कमजोर हुई जा रही हैं|छत की पुआले सड़ी जा रहीं हैं|और खपरैल फूटे जा रहे हैं,एक-एक करके|गाँव का तालाबअब बहुत छोटा हो गया हैं|जिसे बस चार कदम में,नापा